01. चत्तारि मंगलं
पंच परमेष्ठी नमस्कार अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु ये पाँच परमेष्ठी हैं इनको नमस्कार करने से पापों का नाश होता है। अरिहंत– जिन्होंने चार घाति या कर्मों का नाश कर दिया है, जिनमे छियालीस गुण होते हैं और अठारह दोष नहीं होते हैं, वे अरिहंत परमेष्ठियों कहलाते हैं। सिद्ध– जिन्होंने आठों कर्मों का नाश…
पंचेन्द्रिय तिर्यंच के भेद पंचेन्द्रिय तिर्यंच के तीन भेद हैं- जलचर, स्थलचर और नभचर। जलचर– जो जल में रहते हैं। जैसे-मगर, मछली, कछुआ आदि। स्थलचर- जो पृथ्वी पर चलते हैं। जैसे-बैल, घोड़ा, बन्दर, हाथी आदि। नभचर- जो आकाश में उड़ा करते हैं। जैसे-कबूतर, तोता, चिड़िया आदि। सैनी-असैनी पंचेन्द्रिय के दो भेद हैं- सैनी, असैनी। जिनके…
कर्म सिद्धान्त अध्यापक- यह सारा विश्व अनादि अनन्त है अर्थात् न इसका आदि है और न कभी अन्त ही होगा। इसे किसी ईश्वर ने नहीं बनाया है। बालक- गुरु जी! यदि इस विश्व को ईश्वर ने नहीं बनाया है, तो हमें सुख और दु:ख कौन देता है ? अध्यापक- बालकों! हम सभी को सुख-दु:ख देने…
(चौबीसी नं. २८) पश्चिम पुष्करार्धद्वीप ऐरावतक्षेत्र भूतकालीन तीर्थंकर स्तोत्र गीता छंद दिश अपर पुष्कर द्वीप में, शुभ क्षेत्र ऐरावत कहा। उस मध्य आरज खंड में, तीर्थेशगण होते वहाँ।। जो हुए बीते काल में, उन जिनवरों को मैं नमूँ। बहु भक्ति श्रद्धा से यहाँ, मन-वचन-तन से नित नमूँ।।१।। दोहा श्री ‘उपशांत’ जिनेन्द्र हैं, प्रशम गुणाकर आप।…
(चौबीसी नं. ३०) पश्चिम पुष्करार्ध ऐरावतक्षेत्र भविष्यत्कालीन तीर्थंकर स्तोत्र गीता छंद पश्चिम सुपुष्कर द्वीप के, उत्तर दिशा में जानिये। शुभ क्षेत्र ऐरावत वहाँ पर, कर्म भूमी मानिये।। होंगे वहाँ तीर्थेश भावी, आज उनकी वंदना। मैं करूँ श्रद्धा भक्ति धरके, मोह की कर वंचना।।१।। दोहा कोटि सूर्य शशि से अधिक, तुम प्रभु जोतिर्मान। शीश नमाकर मैं…
(चौबीसी नं. २७) पश्चिम पुष्करार्धद्वीप भरतक्षेत्र भविष्यत्कालीन तीर्थंकर स्तोत्र अडिल्ल छंद पश्चिम पुष्कर भरतक्षेत्र मनमोहना। भाविकाल के तीर्थंकर से सोहना।। उन चौबीसों जिनवर का वंदन करूँ। आशा सरवर तुम वच से सूखा करूँ।।१।। दोहा नाथ! आप शिवपथ विघन, करते चकनाचूर। इसी हेतु मैं नित नमूँ, मिले आत्मरस पूर।।२।। नरेन्द्र छंद मन से संचित पाप उदयगत,…
(चौबीसी नं. २६) पश्चिम पुष्करार्धद्वीप भरतक्षेत्र वर्तमान तीर्थंकर स्तोत्र गीता छंद पुष्कर अपर के भरत में, संप्रति जिनेश्वर जो हुए। समरस सुधास्वादी मुनी, उनके चरण में नत हुए।। उन वीतरागी सौम्य मुद्रा, देख जन-मन मोदते। उनकी करूँ मैं वंदना, वे सकल कल्मष धोवते।।१।। दोहा अलंकार भूषण रहित, फिर भी सुन्दर आप। आयुध शस्त्र विहीन हो,…
(चौबीसी नं. २३) पूर्व पुष्करार्धद्वीप ऐरावत क्षेत्र वर्तमान तीर्थंकर स्तोत्र नरेन्द्र छंद पूरब पुष्कर ऐरावत के, वर्तमान तीर्थंकर। चिच्चैतन्य सुधारस प्यासे, भविजन को क्षेमंकर।। उनको नितप्रति शीश नमाके, प्रणमूँ मन-वच-तन से। आतम अनुभव अमृत हेतु, वंदूँ अंजलि करके।।१।। दोहा निज में ही रमते सदा, सिद्धिवधू भरतार। इसी हेतु भविजन नमें, भुक्ति मुक्ति करतार।।२।। दोहा श्री…
(चौबीसी नं. २०) पूर्व पुष्करार्धद्वीप भरतक्षेत्र वर्तमान तीर्थंकर स्तोत्र गीता छंद वर पूर्व पुष्कर द्वीप में, जो भरत क्षेत्र महान् है। उसमें चतुर्थकाल में हों, तीर्थकर भगवान हैं।। उन वर्तमान जिनेश्वरों की, मैं करूँ नित वंदना। रुचि से अतुल बहु भक्ति से, चाहूँ सदा हित आपना।।१।। सखी छंद श्री ‘जगन्नाथ’ तीर्थंकर, सुरगणनुत भव्य हितंकर। मैं…