श्री शांति-जिन-स्तुति (पृथ्वी छंद)
श्री शांति-जिन-स्तुति (पृथ्वी छंद) सुरेन्द्र-मुकुट-स्फुरद्विविधरत्न-कांत्युल्लसच्- चलन्मधुकरैर्हि यस्य चरणाब्जयुक् चुम्बितम्।। भवत्यपि हृदि स्मृतं सकलतापशांत्यै क्षणात्। स्तवीमि सततं तमेव किल शांतिनाथं मुदा।।१।। इन्द्रमुकुट के स्फुरित विविध, रत्नों की कांति चमचमती, जिनके चरण कमल युग चुंबित, भ्रमरों की शंका करती। जिनकी नाम स्तुति भी हृदि में, सकल ताप को शांत करी, अहो मुदित उन शांतिनाथ की, करूँ संस्तुति…