चतुर्थ परिच्छेद का सार
चतुर्थ परिच्छेद का सार भेदैकांत और अभेदैकांत का खंडन और स्याद्वाद सिद्धि (कारिका ६१ से ७२ तक) योग कहता है कि कार्य-कारण, गुण-गुणी, अवयव-अवयवी आदि सभी परस्पर में भिन्न-भिन्न हैं। यह समवाय नाम का एक संबंध मानता है जिसका अर्थ है ‘अयुतसिद्ध में संबंध होना’ उस समवाय से ही सब के संबंध मानता है। जैसे-जीव…