03. अयोध्या तीर्थ पूजा
(पूजा नं.-2) अयोध्या तीर्थ पूजा रचयित्री-गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी -अथ स्थापना- …
(पूजा नं.-2) अयोध्या तीर्थ पूजा रचयित्री-गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी -अथ स्थापना- …
(पूजा नं.-1) तीर्थंकर पंचकल्याणक तीर्थ पूजा (समुच्चय पूजा) -शंभु छंद- श्री ऋषभदेव से महावीर तक चौबिस तीर्थंकर प्रभु हैंं। इन सबके पंचकल्याणक से पावन तेईस तीर्थ भू हैं।। मेरा भी हो कल्याण प्रभो! मैं पंचकल्याणक तीर्थ नमूँ। आह्वानन स्थापन एवं सन्निधीकरण विधि से प्रणमूँ।। ॐ ह्रीं वृषभादिवीरान्तचतुर्विंशतितीर्थंकराणाम् पंचकल्याणक तीर्थसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
नवदेवता पूजन –गणिनी आर्यिका ज्ञानमती -गीता छन्द- अरिहंत सिद्धाचार्य पाठक, साधु त्रिभुवन वंद्य हैं। जिनधर्म जिनआगम जिनेश्वर, मूर्ति जिनगृह वंद्य हैं।। नव देवता ये मान्य जग में, हम सदा…
बड़ी जयमाला -समुच्चय जयमाला-शंभु छंद- जय ऋषभदेव जय अजितनाथ, संभवजिन अभिनंदन जिनवर। जय सुमतिनाथ जय पद्मप्रभ, जिनसुपार्श्व चन्द्रप्रभ जिनवर।। जय पुष्पदंत शीतल श्रेयांस, जय वासुपूज्य जिन तीर्थंकर। जय विमलनाथ जिनवर अनंत, जय धर्मनाथ जय शांतीश्वर।।१।। जय कुंथुनाथ अरनाथ मल्लि, जिन मुनिसुव्रत तीर्थेश्वर की। जय नमिजिन नेमिनाथ पारस, जय महावीर परमेश्वर की।। ये चौबीसोें तीर्थंकर ही,…
भगवान श्री महावीर जिनपूजा (तर्ज-तुमसे लागी लगन……) आपके श्रीचरण, हम करें नित नमन, शरण दीजे। नाथ! मुझपे कृपा दृष्टि कीजे।।टेक.।। वीर सन्मति महावीर भगवन् ! आवो आवो यहाँ नाथ! श्रीमन्! आप पूजा…
भगवान श्री पार्श्वनाथ जिनपूजा -अथ स्थापना- (तर्ज-गोमटेश जय गोमटेश मम हृदय विराजो……..) पार्श्वनाथ जय पार्श्वनाथ, मम हृदय विराजो-२ हम यही भावना भाते हैं, प्रतिक्षण ऐसी रुचि बनी रहे। हो रसना…
भगवान श्री नेमिनाथ जिनपूजा -अथ स्थापना- (तर्ज-करो कल्याण आतम का……) नमन श्री नेमि जिनवर को, जिन्होंने स्वात्मनिधि पायी। तजी राजीमती कांता, तपो लक्ष्मी…
भगवान श्री नमिनाथ जिनपूजा -अथ स्थापना-गीता छंद- नमिनाथ के गुणगान से, भविजन भवोदधि से तिरें। मुनिगण तपोनिधि भी हृदय में, आपकी भक्ती धरें।। हम भी करें आह्वान प्रभु का, भक्ति श्रद्धा से यहाँ। सम्यक्त्व निधि मिल जाय स्वामिन्! एक ही वांछा यहाँ।।१।। ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
भगवान श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनपूजा -अथ स्थापना (नरेंद्र छंद)- श्री मुनिसुव्रत तीर्थंकर के, चरण कमल शिर नाऊँ। व्रत संयम गुण शील प्राप्त हों, यही भावना भाऊँ।। मुनिगण महाव्रतों को पाकर, मुक्तिरमा को परणें। हम भी आह्वानन कर पूजें, पाप नशें इक क्षण में।।१।। ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेंद्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
भगवान श्री मल्लिनाथ जिनपूजा -अथ स्थापना-नरेन्द्र छंद- तीर्थंकर श्रीमल्लिनाथ ने, निज पद प्राप्त किया है। काम मोह यम मल्ल जीतकर, सार्थक नाम किया है।। कर्म मल्ल विजिगीषु मुनीश्वर, प्रभु को मन में ध्याते। हम पूजें आह्वानन करके, सब दु:ख दोष नशाते।।१।। ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …