02. श्री सरस्वती विधान
श्री सरस्वती विधान शंभु छंद तीर्थंकर के मुख से खिरती, अनअक्षर दिव्यध्वनी भाषा। बारह कोठों में सबके हित, परिणमती सर्वजगत् भाषा।। गणधर गुरु जिन ध्वनि को सुनकर, बारह अंगों में रचते हैं। हम दिव्यध्वनी का आह्वानन, करके भक्ती से यजते हैं।।१।। ॐ ह्रीं तीर्थंकरमुखकमलविनिर्गतद्वादशांगमयीसरस्वतीमातः! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …