आत्मा का आनंद किनको आता है?!
आत्मा का आनंद किनको आता है? जायंते विरसा रसा विघटते गोष्ठीकथा कौतुकं,शीर्यन्ते विषयास्तथा विरमति प्रीति: शरीरेपि च।जीषं वागपि धारयत्यविरतानन्दात्म शुद्धात्मन:,चिन्तायामपि यातुमिच्छति समं दोषैर्मन: पंचताम्। नित्य आनन्दस्वरूप शुद्ध आत्मा का चिंतवन करने पर रस नीरस हो जाते हैं, परस्पर वार्तालापरूप कथा का कौतूहल नष्ट हो जाता है, विषय समाप्त हो जाते हैं, शरीर के विषय…