कुशल अनुशासिका
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परम पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की प्रथम आर्यिका शिष्या प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी ने गुरु प्रेरणा से अब तक २५० ग्रंथों की रचना की है जिस क्रम में उन्होंने तीर्थंकर भगवान ,उनकी जन्मभूमि एवं गुरुओं के जीवनवृत्त को विस्तार रूप से बताने वाले , गुणानुवाद रूप ग्रंथों का संपादन करने में अपनी मुख्य भूमिका निभाई है | अभिनन्दन ग्रन्थ में तत्संबंधित विषयवस्तु अथवा उन महापुरुषों के जीवन के हर एक पहलू पर प्रकाश डाला जाता है | इन अभिनन्दन ग्रंथों का संपादन करके माताजी ने जिनशासन पर महान उपकार किया है |
परम पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की सुशिष्या परम पूज्य आर्यिकरत्न श्री चंदनामती माताजी ने २५० ग्रंथों की रचना की है उनमें से भक्तिमार्ग दवारा भक्तों को देव, शास्त्र ,गुरु के प्रति अगाध श्रद्धा जाग्रत कर पुण्य प्राप्ति का माध्यम प्रदान करते हुए उन्होंने अनेक मंडल विधानों की रचना की है | उनमें भी अत्यंत लोकप्रिय विधानों का सार इस आलेख में प्रस्तुत किया गया है | वास्तव में भक्ति मार्ग के दवारा प्रत्येक प्राणी सरलता से अपने कर्मों की निर्जरा कर महान पुण्य का बंध कर सकता है |
परम पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की प्रथम आर्यिका शिष्या परम पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिकारत्न श्री चंदनामती माताजी एक विदुषी आर्यिका और जिनशासन की उदीयमान नक्षत्र हैं | पूज्य माताजी से आगम ग्रंथों का तलस्पर्शी ज्ञान प्राप्त करके उन्होंने गुरुप्रेरणा से अनेकों लघु एवं वृहतकाय ग्रंथों की रचना की है जिसमें अनेक पूजन , भजन , विधान , संस्कृत – हिन्दी स्तुतियाँ , काव्य कथानक तथा टीका ग्रन्थ आदि शामिल हैं | वे एक उच्च कोटि की लेखिका और आशु कवियित्री हैं , प्रस्तुत आलेख में परम पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी दवारा भगवान ऋषभदेव के गुणानुवाद रूप संस्कृत भाषा में लिखे गए ग्रन्थ तीर्थंकर श्री ऋषभदेव चरितं पर चंदनामती माताजी दवारा लिखी गयी हिन्दी टीका , समयसार विधान तथा कुछ संस्कृत स्तुतियों का सार बताया गया है | ऐसी विदुषी आर्यिकरात्न को पाकर यह जिनशासन धन्य है , वे चिरकाल तक स्वस्थ और चिरायु रहकर जैनागम को ऐसे अमूल्य रत्न प्रदान करती रहें यही पवित्र भावना है |