मन की चिट्ठियां
मन की चिट्ठियां पढ़ लेती मन की चिट्ठिया, यह मेरे बेटे की बिटिया घर—घर में पायल छमकाती, आंगन फूलों सा महकाती मुस्कानों के दीप जलाकर, मुफ्त हंसी के फूल खिलाकर बन जाती है गीत बोल के, लौटा लाती दिन अतीत के चंचल सी चाबी की गुड़िया है कोई जादू की पुड़िया स्नेह मूलधन लेकर बेटे,...