तत्त्वार्थसूत्र भजन- द्वितीय अध्याय!
भजन-२ द्वितीय अध्याय हे वीतराग सर्वज्ञ देव! तुम हित उपदेशी कहलाते। तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, श्री उमास्वामि तव गुण गाते।।टेक.।। हैं जीव तत्व के पाँच भाव, जो आत्मा में ही होते हैं। औदयिक पारिणामिक उपशम, क्षय और क्षयोपशम होते हैं।। संसारी-मुक्त सभी जीवों में, यथाशक्ति पाये जाते। तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, श्री उमास्वामि…