तू भक्ति करके प्रभु की!
तू भक्ति करके प्रभु तर्ज—मैं चंदन बनकर………………………………………… तू भक्ति करके प्रभु की, भवसागर तिर जाये। तू पूजा करके प्रभु की, खुद पूज्य बन जावे।। तू भक्ति…।। टेक.।। पर निन्दा करने से, निज निन्दा होती है। तू वन्दन करके प्रभु का, खुद वन्दित हो जावे।।१।। जो छत्र लगाता प्रभु पर, वह छत्रपति…