कर्म के फेरे
कर्म के फेरे (काव्य पैतालीस से सम्बन्धित कथा) ‘‘क्यों भाई! तुम कौन हो? क्या नाम है तुम्हारा?’’ ‘‘मैं उज्जयनी नरेश नृपशेखर का इकलौता पु़त्र युवराज हंसराज हूँ।’’ ‘‘फिर तुम्हारा यहाँ नागपुर आना कैसा हुआ?’’ ‘‘दुर्भाग्य का सताया हुआ कहीं भी जा सकता है राजन्! दैवाधीन मनुष्य का उसके आने हाथ में क्या है ? उदयागत…