ऐतिहासिक महामुनि इस युग की आदि में सबसे पहले भगवान ऋषभदेव ने जैनेश्वरी दीक्षा ग्रहण की थी ” लौकान्तिक देवों द्वारा पूजित ऋषभदेव का ताप कल्याणक महोत्सव इन्द्र आदि चतुर्निकाय देवों ने मनाया था ” भगवान स्वयं दीक्षित हुए थे ” चूँकि तीर्थंकर स्वंय ही दीक्षा ग्रहण करते है, वे किसी को गुरु नहीं बनाते…
अक्षय तृतीया जगद्गुरू भगवान ऋषभदेव ने दीक्षा लेकर छह महीने का योग धारण कर लिया था। जब छह महीने पूर्ण हो गये, तब वे प्रभु मुनियों की चर्याविधि बतलाने के लिये आहारार्थ निकले। यद्यपि भगवान को आहार की आवश्यकता नहीं थी, फिर भी मोक्षमार्ग को प्रगट करने के लिये पृथ्वीतल पर विचरण करने लगे। उस…
धन—एक मीठा जहर धांय! धांय! जंजीर खिंची, ट्रेन रुकी, और तीनों ने अपना काम शुरू किया। डिब्बे में बैठे सब काँप रहे थे। अपनी कला में कुशल उन तीनों की निगाह से भला कौन बच सकता था ? मिनटों में करोड़ों कर माल समेट, ट्रेन से कूद, जंगल के रास्ते इस तरह भागे कि पुलिस…
धन की भूख पेट की भूख से ज्यादा पेटी यानि धन की भूख होती है। पेट की भूख भोजन कर लेने से कुछ समय के लिए शांत हो जाती है परन्तु पेटी, रूपयों पैसों से भरी होने पर भी , मन की लालसा हमेशा पेटी के आकार को बड़ा करती जाती है। लालसा के कारण…
”श्री गौतम गणधर स्वामी ” मगध देश में एक ब्राह्मण नाम का नगर था। वहाँ एक शांडिल्य नाम का ब्राह्मण रहता था। उसकी भार्या का नाम स्थंडिला था, वह ब्राह्मणी बहुत ही सुन्दर और सर्व गुणों की खान थी। इस दम्पति के बड़े पुत्र के जन्म के समय ही ज्योतिषी ने कहा था कि यह…
कन्यारत्न ही सर्वोत्कृष्ट रत्न है महाराज अकंपन रत्नजटित सिंहासन पर आरूढ़ हैं। वीरांगनाएँ चमर ढोर रही हैं। सभा का चारों तरफ का वातावरण अपनी शोभा से सौधर्म इन्द्र की सुधर्मा सभा की भी मानों हँसी उड़ा रहा है। इसी बीच में सुपुत्री सुलोचना कृश शरीर को धारण करती हुई हाथ में पूजा के शेषाक्षत को…
शून्यवाद क्या है? सुकौशल–माताजी! शून्यवाद किसे कहते हैं? माताजी-एक सम्प्रदाय वाले हैं, वे कहते हैं कि जो कुछ भी चेतन-अचेतन पदार्थ दिख रहे हैं, वे कुछ नहीं, केवल कल्पना मात्र हैं। यह सारा जगत् ‘‘शून्यरूप’’ है कुछ है ही नहीं, केवल स्वप्न या इन्द्रजाल के समान सब प्रतिभासित हो रहा है। यहाँ तक कि इस…
सती सुलोचना सुप्रभा– बहन कनकप्रभा ! आज मुझे सुलोचना की कोई चमत्कारिक घटना सुनाओ कनकप्रभा– अच्छा बहन सुनो ! सचमुच में सुलोचना भी एक महान नारीरत्न हुई है भरत चक्रवर्ती के सेनापति रत्न जयकुमार स्वयंवर विधि से सुलोचना के साथ पाणिग्रहण करके बनारस नगरी से चलकर अपनी राजधानी हस्तिनापुर नगरी की ओर जा रहे थे…
दो बेटों का बाप इतनी आयु तो न थी कि वह परलोक वासी हो जाए पर काल के आगे किसी का जोर नहीं। पति और दो लड़कों को छोड़ वह इस संसार से कूच कर गई। दोनों लड़के पिता के पास रहने लगे। पिता एक छोटी सी दुकान चलाते थे। लड़के सयाने हुए तो उन्हें…