यथाख्यात संयम!
[[श्रेणी :शब्दकोष]] यथाख्यात संयम–Yathakhyata Sanyam. Revelation of absolute conduct. वीतराग संयम जो मोहनी कर्म के उपशांत या क्षय हो जाने पर प्रगट होता है”
[[श्रेणी :शब्दकोष]] यथाख्यात संयम–Yathakhyata Sanyam. Revelation of absolute conduct. वीतराग संयम जो मोहनी कर्म के उपशांत या क्षय हो जाने पर प्रगट होता है”
[[श्रेणी: शब्दकोष]] स्ववृत्ति – Svavrtti. Contemplatlion about self. आत्मा मे प्रवृत्ति रुप ध्यान अर्थात् बाह्म चिंताओ से निवृत्ति होना।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] शैला – Shailaa. Name of the 16th earth of the Khar division of Ratanaprabha earth. पहली रत्नप्रभा पृथ्वी के खारभाग में 16वीं पृथ्वी जो 1000योजन मोटी है “
[[श्रेणी: शब्दकोष]]स्वर्ण – Svarna. Gold, name of a city in the south of Vijayardh mountain. सोना, एक धातु, विजयार्ध की दक्षिण श्रेणी का एक नगर।
दर्शन मार्गणा A type of investigation related to beings. 14 मार्गणाओं में एक मार्गणा जिसमें दर्शन उपयोग सहित जीवों को खोजा जाता है। [[श्रेणी: शब्दकोष ]]
[[श्रेणी: शब्दकोष]]स्वर नाम कर्म – Svara Naama Karma. Physique making Karmic nature causing voice. जिस कर्म के उदय से मनोज्ञ स्वर की रचना होती है वह सुस्वर नामकर्म है, इससे विपरीत दुःस्वर नामकर्म है।
दत्तक Adopted son, Name of a chief disciple of Lord Chandra Prabhu. गोद लिया हुआ पुत्र , चन्द्रप्रभु भगवान के मुख्य गणधार का नाम। [[श्रेणी: शब्दकोष ]]
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == सम्यक्त्व : == स्थैर्यं प्रभावना भक्ति: कौशलं जिनशासने। तीर्थसेवा च पंचापि, भूषणानि प्रचक्षते।। —योगशास्त्र : २-१६ धर्म में स्थिरता, धर्म की प्रभावना—व्याख्यानादि द्वारा, जिनशासन की भक्ति, कुशलता—अज्ञानियों को धर्म समझाने में निपुणता, चार तीर्थ की सेवा—ये पांच सम्यक्त्व के भूषण हैं। सम्यक्त्वरहिता ननु, सुष्ठु अपि उग्रं तप: चरन्त:…
[[श्रेणी: शब्दकोष]]स्वयंभूरमण – Svayammbhuuramana. Name of the last island & the last ocean of middle universe. मध्य लोक का अंतिम द्वीप एंव अंतिम सागर जिनका जल सामान्य जल जैसा होता है।
त्रिलक्षण कदर्थन A book written by Patrakesari no.1. पात्रकेसरी नं- 1 (ई.श. 6-7) ,द्वारा रचित एक ग्रंथ। [[श्रेणी: शब्दकोष ]]