आरंभ!
आरंभ Beginning, Tendency to cause pain to others. कार्य करने लगना, पापास्रव के 108 कारणों में से एक भेद प्राणियों को दुःख पहुँचाने वाली प्रवृत्ति।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
आरंभ Beginning, Tendency to cause pain to others. कार्य करने लगना, पापास्रव के 108 कारणों में से एक भेद प्राणियों को दुःख पहुँचाने वाली प्रवृत्ति।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी : शब्दकोष]] बिंबसार – Bimbasara Another name of Magadharaj Shrenik, who will be the first Tirthankar (Jaina-Lord) of future time. मगधराज श्रेणिक का अपर नाम ” समय ई.पू.६०४-५५२ ” ये भगवान महावीर के समवसरण में प्रमुख श्रोता थे ,जिनके द्वारा ६०,००० प्रशन पूछे गये ” ये भविष्यकाल के प्रथम तीर्थकर ‘महापध्ह्य’ होंगे “
आशातना Destroying of disrespectful conduct. कुचारित्र का क्षपण करना।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] निर्माल्य द्रव्य – Nirmaalya Dravya. The worshipping articales made offered to the Lord. जो अष्टद्रव्य सामग्री मंत्र बोलकर जिनेन्द्रादि की पूजा में चढ़ा दी जाये “
आहारपर्याप्ति Food offering with devotion to saints. एक शरीर को छोड़कर दूसरे नवीन शरीर के बिना कारणभूत जिन नोकर्म वर्गणाओं को जीव ग्रहण करता है उनको खलरसभाग परिणमाने की प्र्याप्त नामकर्म के उदय से रहित जीव की शक्ति का पूर्ण हो जाना।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] निनार्मिक – Ninaarmika. The so of king Gangdev who took birth later as the 9th Narayana ‘Krishna’. राजा गंगदेव का जिसने मुनि बन तपस्या की और अगले भाव में ‘कृष्ण’ नामक नवां नारायण हुआ “
आहारक शरीर नामकर्म प्रकृति Chief and secondary parts of Aharak Sharir. वह नामकर्म प्रकृति जिससे आहारक शरीर बनता है।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] निर्जरा अनुप्रेक्षा – Nirjaraa Anuprekshaa. Contmplation on dissociation of karmas निर्जरा में निमित ऐसे अनशन आदि 12 प्रकार के तप का विचार करना “
इंद्रभूति Name of the first chief disciple of Lord Mahavira. भगवान महावीर के प्रथम गणधर का नाम जो पूर्व में गौतम गोत्रीय ब्राह्मण थे।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] निरुद्ध अविचार भक्त प्रत्याख्यान – Niruddha Avichaara Bhakta Pratyaakhyaana. Slow renunciation of food for ritualistic death. सल्लेखना की एक विधि-रोग से पीड़ित हो जाने के कारणजिसका जंघाबल क्षीण हो गया हो, ऐसे मुनि इस विधिपूर्वक समाधि ग्रहण करते है “