पिंडस्थ ध्यान!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पिंडस्थ ध्यान – Pimdastha Dhyana. Procedural meditation on soul with different concepts. पार्थिवी आदि अनेक प्रकार की धारणाओं द्वारा अपने शरीर में स्थित आत्मा का एकाग्रचित्त होकर ध्यान करना “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पिंडस्थ ध्यान – Pimdastha Dhyana. Procedural meditation on soul with different concepts. पार्थिवी आदि अनेक प्रकार की धारणाओं द्वारा अपने शरीर में स्थित आत्मा का एकाग्रचित्त होकर ध्यान करना “
गुरुवन्दना Belief in false preceptor of spiritual teachers. रत्नत्रयधारक यति, आचार्य, उपाध्याय, साधु आदि के उत्कृष्ट गुणों को जानकर श्रद्धा सहित विनय करना ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सुस्थिता – Susthitaa. Name of a female deity of Ruchak mountain. रूचक पर्वत वासिनी दिक्कुमारी देवी ।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] न्यायरत्नाकर – Nyaayrtnakra. See – Nyaayaratnamaalaa देखें- न्यायरत्नाकमाला “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विप्लुत – Vipluta. Images of moon etc. in water. जिसका तरंगादि में अनेक प्रकार से डूबना या तैरना हो रहा है, ऐसे, जल में पड़े हुए चंन्द्र प्रतिबिम्ब आदि विप्लुत है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सुवीर्य – Suveerya. Name of a king of Ikshvaku dynasty. The 46th son of king Dhritrashta. इक्ष्वाकुवंशी एक राजा । अतिवीर्य का पुत्र, उदितपराक्रम का पिता, राजा धृतराष्ट्र तथा रानी गांधारी का 46 वाॅं पुत्र ।
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भवनत्रिक देव – Bhvanatrika Deva. Three type of deities (Vyantar, Jyotishka, Bhavanvasi). व्यंतर, ज्योतिष्क, भवनवासी ३ निकायों के देव को भवनत्रिक कहते हैं “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वराह – Varaah.: Rhinoceros, significant symbol of Lord Shreyansnath , Name of a city in the north of Vijayardh mountain. गैंडा ,भगवान् श्रेयांसनाथ का चिन्ह , विजयार्ध की उत्तर श्रेणी का एक नगर “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वप्र – Vapra.: A country of western Videh Kshetra (region), Name of a summit of Chandragiri Vakshar (mountain) & its deity. पश्चिम विदेह का एक देश ,चन्द्रगिरि वक्षार एक कूट व उसका स्वामी देव “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भर्तृहरी – Bhartrhari. The elder brother of king Vikramaditya, Name of the younger brother of Acharya Shubhachandra. राजा विक्रमादित्य के बड़े भाई, आचार्य शुभचन्द्र के छोटे भाई, जिन्होंने तापस होकर १२ वर्ष तपश्चरण कर स्वर्ण बनाने की सिद्धि प्राप्त की बाद में शुभचन्द्राचार्य से संबोधित होकर दिगम्बर दीक्षा धारण की “