10. दसवी अध्याय!
दसवी_अध्याय (१०) शालिनी छंद दिग्वासा’ हो वस्त्र दिश् ही तुम्हारे। ऐसी मुद्रा हो कभी नाथ मेरी।। द्धा से मैं नित नमूं नाम मंत्रं। दीजे शक्ती आत्म संपत्ति पाऊँ।।९०१।। स्वामी सुन्दर ‘वातरशना’ तुम्हीं हो। धारी वायू करधनी है कटी में।।श्रद्धा.।।९०२।। स्वामी ‘निग्र्रंथेश’ हो बाह्य अंत:। चौबीसों ही ग्रन्थ से मुक्त मानें।।श्रद्धा.।।९०३।। स्वामी भूमी पे ‘दिगम्बर’…