योनियाँ :!
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == योनियाँ : == ते ते कर्मत्वगता: पुद्गलकाया: पुनरपि जीवस्य। संजायन्ते देहा: देहान्तरसंक्रमं प्राप्य।। —समणसुत्त : ६५९ इस प्रकार कर्मों के रूप में परिणत वे पुद्गल—पिण्ड देह से देहान्तर को—नवीन शरीर रूप परिवर्तन को—प्राप्त होते रहते हैं। अर्थात् पूर्वबद्ध कर्म के फलरूप में नया शरीर बनता है और नये…