भजन
“…भजन…” रचयित्री-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती तर्ज—कभी कुण्डलपुर जाना है…… प्रभू की पूजन करना है, प्रभू की भक्ति करना है, निजातम शक्ती भरना है, मुझे मुक्तिश्री वरना है।। प्रभु भक्ती गंगा में अवगाहन करना है। सिद्धों के गुण की सबको, मिलकर अर्चा करना है। प्रभू की पूजा……।। टेक.।। जनम-जनम के शुभ कर्मों का, फल यह सिद्ध अवस्था।…