श्रीपार्श्वनाथस्तवन
श्रीपार्श्वनाथस्तवन (सोरठा छंद) पारस प्रभु को नाऊँ, सार सुधासम जगत में। मैं बाकी बलि जाऊँ, अजर अमर पद मूल यह।। हरिगीता छंद (२८ मात्रा) राजत उतंग अशोक तरुवर, पवन-प्रेरित थर-हरै। प्रभु निकट पाय प्रमोदनाटक, करत मानो मन हरै।। तस फूल गुच्छन भ्रमर गुंजत, यही तान सुहावनी। सो जयो पार्श्व जिनेन्द्र पातक, हरन जग चूड़ामनी।। निज…