लोक व्यवस्था
द्रव्य, तत्व और पदार्थ (लोक व्यवस्था) जैन मान्यतानुसार इस दुनिया को कोई बनाता या मिटाता नहीं अपितु प्रत्येक वस्तु अस्तित्व में रहती हुई बदलावरूप से उत्पन्न व विनष्ट होती है। इसे ही ‘उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्त्तसत्’ कहा है। चौदह राजू माप वाले पुरुषाकार इस लोक के निचले हिस्से को अधो (पाताल) लोक, ऊपर को उर्ध्व (स्वर्ग) लोक और…