प्रवचन नं.-५ समवसरण की महिमा
प्रवचन नं.-५ समवसरण की महिमा श्रीमते वर्धमानाय, नमो नमित विद्वषे। यज्ज्ञानान्तर्गतं भूत्वा, त्रैलोक्यं गोष्पदायते।। भव्यात्माओं! समवसरण की महिमा और समवसरण वैâसा होता है? इस बारे में मैं संक्षेप में किंचित् वर्णन करती हूँ। विस्तार से आप ग्रंथोें में पढ़ें, उसका कितना सुन्दर वर्णन है। उसका वर्णन साक्षात् गणधरदेव भी पूर्णरूपेण नहीं कर सकते। प्रश्न यह…