श्री अनन्तनाथ चालीसा
श्री अनन्तनाथ चालीसा -दोहा- श्री अनन्त जिनराज हैं, गुण अनन्त की खान। अंतक का भी अंत कर, बने सिद्ध भगवान।।१।। गुण अनन्त की प्राप्ति हित, करूँ अनन्त प्रणाम। अनन्त गुणाकर नाथ! तुम, कर दो मम कल्याण।।२।। -चौपाई- श्री अनन्तजिनराज आप ही, तीनलोक के शिखामणी हो।।१।। भव्यजनों के मनकमलों को, सूरज सम विकसित करते हो।।२।। प्रभु…