समुच्चय महार्घ
समुच्चय महार्घ मैं देव श्री अर्हंत पूजूं सिद्ध पूजूं चाव सों। आचार्य श्री उवझाय पूजूं साधु पूजूूं भाव सों।।१।। अर्हन्त भाषित बैन पूजूँ द्वादशांग रचे गनी। पूजूं दिगम्बर गुरुचरन शिव हेतु सब आशा हनी।।२।। सर्वज्ञ भाषित धर्म दशविधि दया-मय पूजूँ सदा। जजूँ भावना षोडश रत्नत्रय, जा बिना शिव नहिं कदा।।३।। त्रैलोक्य के कृत्रिम अकृत्रिम चैत्य…