आगम के आलोक में वर्ण-गोत्र आदि की स्थिति!
आगम के आलोक में वर्ण-गोत्र आदि की स्थिति -आचार्यकल्प १०८ श्री श्रुतसागर जी महाराज ( समाधिस्थ ) इस हुण्डावसर्पिणी काल में भगवान आदिनाथ ने जिस समय वर्णों का विधान किया था, उस समय जीवों के पिण्ड की अशुद्धता रूप संकरता नहीं थी अर्थात् पिण्ड शुद्ध ही था। शनै: शनै: जब विषयासक्ति और विलासिता बढ़ी तो…