शुद्धोपयोग अधिकार
शुद्धोपयोग अधिकार स्रग्धरा-आत्मा जानाति विश्वं ह्यनवरतमयं केवलज्ञानमूर्ति: मुक्तिश्रीकामिनीकोमलमुखकमले कामपीडां तनोति। शोभां सौभाग्यचिह्नां व्यवहरणनयाद्देवदेवो जिनेश: तेनोच्चैर्निश्चयेन प्रहतमलकलि: स्वस्वरूपं स वेत्ति।।२७२।। अर्थ-यह केवलज्ञान की मूर्तिस्वरूप आत्मा व्यवहारनय से सदा ही विश्व को जानता है और मुक्तिलक्ष्मी रूपी कामिनी के कोमल मुखकमल पर कामपीड़ा को तथा सौभाग्यचिह्नयुक्त शोभा को विस्तृत करता है। निश्चयनय से वह देव जिनेश्वर मल…