9 . ध्यान की आवश्यकता
(१० ) ध्यान की आवश्यकता आर्तं रौद्रं च दुर्ध्यानं, निर्मूल्य त्वत्प्रसादत:। धर्मध्यानं प्रपद्याहं, लप्स्ये नि:श्रेयसं क्रमात्।।११।। हे प्रभु! इन दो दु:ध्यानों को आपके प्रसाद से निर्मूल करके मैं धर्मध्यान को क्रम से मोक्ष प्राप्त करूंगा। एकाग्रचिंतानिरोध होने के कारण किसी विषय पर मन का स्थिर ध्यान होना आवश्यक है। यह ध्यान उत्तम संहनन वाले मनुष्य…