प्रशस्ति
प्रशस्ति………… -दोहा- वृषभदेव से वीर तक, श्री चौबीस जिनेश। नमूँ नमूँ उनको सदा, मिटे सकल भव क्लेश।।१।। मूल संघ आचार्य श्री, कुंदकुंद गुरुदेव। इनके अन्वय में हुआ, नंदिसंघ दु:ख छेव।।२।। बलात्कार गण सरस्वती, गच्छ प्रसिद्ध महान। इसमें सूरीश्वर हुए शांतिसिंधु गुणखान।।३।। वीरसागराचार्य थे, उनके पट्टाधीश। श्रमणी दीक्षा दे मुझे, किया कृतार्थ मुनीश।।४।। शांति कुंथु अरनाथ…