04. चतुर्थ परिच्छेद
चतुर्थ परिच्छेद ६७. गुणव्रतों के नाम दिग्व्रतमनर्थदण्ड, व्रतं च भोगोपभोग-परिमाणं। अनुवृंहणाद् गुणाना-माख्यान्ति गुणव्रतान्यार्या:।।६७।। इन आठ गुणों में वृद्धि के हेतु त्रय गुणव्रत होते हैं। पहले व्रत को कहते दिग्व्रत दूजा अनर्थदण्डव्रत है।। भोगोपभोग परिमाण रूप व्रत कहा तीसरा हितकारी। ये कहें केवली मुनियों ने अतएव बहुत हैं उपकारी।। जो मूलगुणों की वृद्धि करते हैं और…