ऋषभदेव के श्री भरत आदि १०१ मोक्ष प्राप्त पुत्रों की वंदना
ऋषभदेव के श्री भरत आदि १०१ मोक्ष प्राप्त पुत्रों की वंदना ऋषभदेव के पुत्र सब, भरत आदि शत एक। दीक्षा ले शिवपथ लिया, नमूँ नमूँ शिर टेक।।१।।
ऋषभदेव के श्री भरत आदि १०१ मोक्ष प्राप्त पुत्रों की वंदना ऋषभदेव के पुत्र सब, भरत आदि शत एक। दीक्षा ले शिवपथ लिया, नमूँ नमूँ शिर टेक।।१।।
इक्ष्वाकुवंशीय चौदह लाख राजा लगातार मोक्ष गए (हरिवंशपुराण ग्रंथ से) अनुभूय चिरं लक्ष्मी भूपतिर्भरतेश्वर। आदित्ययशसं पुत्रमभिषिच्य भुवो विभु:।।१।। दीक्षां जग्राह जैनेन्द्रीमुग्रामात्मपरिग्रहाम्। दुर्निग्रहेन्द्रियग्राममृगनिग्रहवागुराम्।।२।। पञ्चमुष्टिमिरुत्पाट्य त्रुट्यद्बन्धस्थिति: कचान्। लोचानन्तरमेवापद् राजन् श्रेणिक! केवलम्।।३।। द्वािंत्रशत्त्रिदशेन्द्रै: स कृतकेवलपूजन:। दीपको मोक्षमार्गस्य विजहार चिरं महीम्।।४।। पूर्वलक्षा: कुमारत्वे तस्यागु: सप्तसप्तति:। साम्राज्ये षट् प्रभोरेका श्रामण्ये विश्वदृश्वन:।।५।। शैलं वृषभसेनाद्यै: वैâलासमधिरुह्य स:। शेषकर्मक्षयान्मोक्षमन्ते प्राप्त: सुरै: स्तुत:।।६।। आदित्यशस:…
विश्व के प्रथम राजाधिराज भगवान ऋषभदेव (आदिपुराण ग्रंथ से) कियत्यपि गते काले षट्कर्मविनियोगत:। यदा सौस्थित्यमायाता: प्रजा: क्षेमेण योजिता:।।१९१।। तदास्याविरभूद् द्यावापृथिव्यो: प्राभवं महत्। आधिराज्येऽभिषिक्तस्य सुरैरागत्य सत्वरम्।।१९२।। सुरै: कृतादरैर्दिव्यै: सलिलैरादिवेधस:। कृतोऽभिषेक इत्येव वर्णनास्तु किमन्यया।।१९३।। तथाप्यनूद्यते िंकचित् तद्गतं वर्णनान्तरम्। सुप्रतीतमपि प्रायो यन्नवैति पृथग्जन:।।१९४।। तदा किल जगद्विश्वं बभूवानन्दनिर्भरम्। दिवोऽवातारिषुर्देवा: पुरोधाय पुरंदरम्।।१९५।। कृतोपशोभमभवत् पुरं साकेतसाह्वयम्। हर्म्याग्रभूमिकाबद्धकेतुमालाकुलाम्बरम्।।१९६।। तदानन्दमहाभेर्य: प्रणेदुर्नृपमन्दिरे। मङ्गलानि जगुर्वारनार्यो…
श्री तीर्थंकर ऋषभदेव विश्वशांति अहिंसा केन्द्र यहाँ श्री ऋषभदेव के महामस्तकाभिषेक के समय मैंने इसे ‘‘विश्वशांति केन्द्र’’ के नाम से घोषित किया है। यहाँ पर विश्वशांति मंत्र का उच्चारण चलता रहेगा-‘‘ॐ ह्रीं विश्वशांतिकराय श्री ऋषभदेवाय नम:’’। (१) यहाँ अयोध्या में भगवान ऋषभदेव के एक सौ एक पुत्र भरत चक्रवर्ती आदि जो मोक्ष प्राप्त कर चुके…
असंख्यातों मोक्षगामी महापुरुषों की जन्मभूमि अयोध्या प्रभु ऋषभदेव ने बड़े पुत्र भरत को राज्यभार सौंप कर प्रयाग में जाकर दीक्षा ली थी, श्रीभरत चक्री के प्रथम पुत्र अर्ककीर्ति ने राज्यभार को अपने पुत्र को सौंपकर दीक्षा लेकर मोक्ष प्राप्त किया, ऐसी परम्परा अविच्छिन्नरूप से चौदह लाख राजाओं तक चली है। आगे भी उसी इच्छवाकुवंश में…
अयोध्या शाश्वत तीर्थ की महिमा भगवान ऋषभदेव जब गर्भ में आने को थे, महाराजा नाभिराय एवं महारानी मरुदेवी के आंगन में छह महीने पहले से ही रत्नों की वर्षा शुरू हो गई थी। सौधर्मेन्द्र की आज्ञा से कुबेर प्रतिदिन माता के आंगन में साढ़े सात करोड़ रत्नों की वर्षा करता था। आषाढ़ कृ. २ को…
वंदना (श्री गौतमस्वामीकृत-निषीधिकादण्डक तथा चैत्यभक्ति से) उड्ढमहतिरियलोए सिद्धायदणाणि णमंसामि, सिद्धणिसीहियाओ अट्ठावयपव्वए सम्मेदे उज्जंते चंपाए पावाए मज्झिमाए हत्थिवालियसहाए जावो अण्णाओ काओवि णिसीहियाओ जीवलोयम्मि। ऊर्ध्वलोक, अधोलोक और मध्यलोक में जितने भी सिद्धायतन जिनमंदिर हैं तथा इस मनुष्यलोक में अष्टापद पर्वत, सम्मेदशिखर, ऊर्जयंत-गिरनार, चंपापुरी, पावापुरी आदि जितने भी तीर्थंकर आदि भगवन्तों के जन्म, निर्वाण आदि क्षेत्र हैं, उन…
मंगल काव्य मंगलं भगवानर्हन्, मंगलं वृषभेश्वर:। मंगलं सर्वतीर्थेशा, जैन धर्मोऽस्तु मंगलम्।।१।। मंगलं भगवान् वीरो, मंगलं गौतमो गणी। मंगलं कुंदकुंदाद्या, जैनधर्मोऽस्तु मंगलम्।।२।।
मंगलाचरण अनादिनिधन णमोकार महामंत्र णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं। णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं।। चत्तारि मंगलं-अरिहंत मंगलं, सिद्ध मंगलं, साहु मंगलं, केवलि पण्णत्तो धम्मो मंगलं। चत्तारि लोगुत्तमा-अरिहंत लोगुत्तमा, सिद्ध लोगुत्तमा, साहु लोगुत्तमा, केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमा। चत्तारि सरणं पव्वज्जामि-अरिहंत सरणं पव्वज्जामि, सिद्ध सरणं पव्वज्जामि, साहु सरणं पव्वज्जामि, केवलि पण्णत्तो धम्मो सरणं पव्वज्जामि।