जयमाला
“….जयमाला….” -बसंततिलका छंद- देवाधिदेव तुम लोक शिखामणी हो। त्रैलोक्य भव्यजन कंज विभामणी हो।। सौ इन्द्र आप पद पंकज में नमे हैं। साधू समूह गुण वर्णन में रमे हैं।।१।। जो भक्त नित्य तुम पूजन को रचावें। आनंद कंद गुणवृंद सदैव ध्यावें।। वे शीघ्र दर्शनविशुद्धि निधान पावें। पच्चीस दोष मल वर्जित स्वात्म ध्यावें।।२।। नि:शंकितादि गुण आठ मिले…