गुरु मंगलाष्टक
“…गुरु मंगलाष्टक…” (श्री वृन्दावन कवि विरचित) संघ सहित श्री कुंदकुंद गुरु, वंदन हेतु गये गिरनार। वाद पर्यो तहँ संशयमति सो, साक्षीवदी अंबिकाकार।। सत्य पंथ निरग्रंथ दिगम्बर, कही सुरी तहँ प्रगट पुकार। सो गुरुदेव बसो उर मेरे, विघन हरण मंगल करतार।।१।। स्वामी समंदभद्र मुनिवर सो, शिवकोटी हठ कियो अपार। वंदन करो शंभु िंपडी को, तब गुरु…