प्रशस्ति
प्रशस्ति……….. ऋषभदेव तीर्थेश को नमूँ अनंतों बार। चक्री भरत प्रभु सिद्ध को, नमूँ भक्ति उरधार।।१।। चौबीसों तीर्थेश युत, ह्रीं नमूँ अतिशायि। पंचवर्णयुत बिम्ब जिन, नमूँ नमूँ सुखदायि।।२।। कुंदकुंद आम्नाय में, गच्छ सरस्वती मान्य। बलात्कारगण सिद्ध है, उनमें सूरि प्रधान।।३।। सदी बीसवीं के प्रथम, शांतिसागराचार्य। उनके पट्टाचार्य थे, वीरसागराचार्य।।४।। देकर दीक्षा आर्यिका, दिया ज्ञानमती नाम। गुरुवर…