अथ प्रत्येक अर्घ्य (१०८ अर्घ्य)
अथ प्रत्येक अर्घ्य (१०८ अर्घ्य) —दोहा— नित्य निरंजन सिद्ध प्रभु, परम हंस भरतेश। पुष्पांजलि से पूजते, पाऊँ निजगुण लेश।।१।। ।।अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।। —शंभु छंद— निज आत्मा की उपलब्धि किया, संतत ही रहते उसमें ही। मैं निज से निज में रम जाऊँ, इसलिये नमूँ तुमको नित ही।। श्री भरत स्वामि की पूजा से ‘सोहं’ यह…