चतुर्विंशतितीर्थंकरस्तोत्र
चतुर्विंशतितीर्थंकरस्तोत्र -स्वयंभूस्तोत्रम्- स्वयंभुवा येन समुद्धृतं जगज्जडत्वकूपे पतितं प्रमादत:। परात्मतत्त्वप्रतिपादनोल्लसद्वचोगुणैरादिजिन: स सेव्यताम्।।१।। अर्थ —जो जगत प्रमाद के वश होकर अज्ञानरूपी कूवें में पड़ा था, उस जगत को जिस स्वयंभू (अपने आप होने वाले) श्री आदिनाथ भगवान ने पर तथा आत्मा के स्वरूप को कहने वाले मनोहर अपने वचनरूपी गुणों से उस अज्ञानरूपी कूवें से बाहर निकाला,…