धर्मोपदेशामृत
धर्मोपदेशामृत प्रथमही धर्म कितने प्रकार का है ? इस बात को बतलाते हैं- -शार्दूलविक्रीडित- धर्मो जीवदया गृहस्थशमिनोर्भेदाद्द्विधा च त्रयं रत्नानां परमं तथा दशविधोत्कृष्टक्षमादिस्तत:। मोहोद्भूतविकल्पजालरहिता वागङ्गसङ्गोज्झिता शुद्धानन्दमयात्मन: परिणतिर्धर्माख्यया गीयते।।७।। अर्थ—समस्त जीवों पर दया करना इसी का नाम धर्म है अथवा एकदेश गृहस्थ का धर्म तथा सर्वदेश मुनियों का धर्म, इस प्रकार उस धर्म के दो भी…