(तृतीय वलय में २७ अर्घ्य)
(तृतीय वलय में २७ अर्घ्य) -दोहा- चिंतित फल देवें सदा, चिंतामणि चिद्रूप। पुष्पांजलि से पूजते, भक्त बने शिवरूप।।१।। अथ तृतीयवलये पुष्पांजलिं क्षिपेत् -शेरछंद- माया से वचन से स्वयं संरंभ जो करें। जो कार्य को करने में भूमिका को विस्तरें।। ये पापहेतु लाखों योनियों में भ्रमावें। जो नाथ की पूजा करें निज संपदा पावें।।५५।। ॐ ह्रीं…