चौबीस तीर्थंकरों की कल्याणक तिथियाँ
चौबीस तीर्थंकरों की कल्याणक तिथियाँ
योजन एवं कोस बनाने की विधि २००० धनुष का १ कोस है। अत: १ धनुष में ४ हाथ होने से ८००० हाथ का १ कोस हुआ एवं १ कोस में २ मील मानने से ४००० हाथ का १ मील होता है। एक महायोजन में २००० कोस होते हैं। एक कोस में २ मील मानने…
समवसरण का ध्यान ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथ तीर्थंकराय नम: -गणिनी ज्ञानमती षोडशं तीर्थकर्तारं, पंचमं चक्रवर्तिनम्। द्वादशं कामदेवं च, शांतिनाथं नमाम्यहम्।। भगवान को केवलज्ञान प्रगट होते ही इन्द्र की आज्ञा से कुबेर अर्धनिमिष में समवसरण की रचना कर देता है। उस समय भगवान तीनों लोकों को और उनकी भूत, भावी, वर्तमान समस्त पर्यायों को युगपत् एक…
प्रशस्ति —शंभुछंद— तीर्थंकर समवसरण त्रिभुवन, में सर्वोत्तम अतिशायी है। यतिवृषभाचार्य आदि वर्णित, गणधर वंदित सुखदायी है।। इसको पढ़ते वंदन करते, प्रभु समवसरण वंदन होगा। सीमंधर प्रभु के समवसरण का, निश्चित ही दर्शन होगा।।१।। श्री मूलसंघ में कुंदकुंद, आम्नाय सरस्वति गच्छ कहा। विख्यात बलात्कारगण से, गुरु आम्नायों में मुख्य रहा। इस परम्परा के आचार्यों का, मैं…
भगवान ऋषभदेव-समवसरण रचना -गणिनी ज्ञानमती -मंगलाचरण- प्रभो: ऋषभदेवस्य, समवादिसृतिर्भुवि। श्रीविहारोऽपि देवस्य, सर्वमंगलकारणम्।। भगवान ऋषभदेव ने पुरिमतालपुर के उद्यान में ध्यान के बल से जब घातिया कर्मों पर विजय प्राप्त कर ली तब उसी क्षण उन्हें केवलज्ञान प्रगट हो गया। तत्क्षण ही तीनों लोकों में आनंद की लहर छा गई। भगवान पृथ्वी से अधर आकाश में…
समवसरण स्तोत्र (गणिनी ज्ञानमती कृत) दोहा- चिन्मय चिंतामणि प्रभो, गुण अनंत की खान। समवसरण वैभव सकल, वह लवमात्र समान।।१।। —शंभुछंद— जय जय तीर्थंकर क्षेमंकर, तुम धर्म चक्र के कर्ता हो। जय जय अनंतदर्शन सुज्ञान, सुखवीर्य चतुष्टय भर्त्ता हो।। जय जय अनंत गुण के धारी, प्रभु तुम उपदेश सभा न्यारी। सुरपति की आज्ञा से धनपति, रचता…
समवसरण रचना (हरिवंशपुराण सेङ) भगवान नेमिनाथ के केवलज्ञान का वर्णन पूर्वाह्रेऽश्वयुजस्यातः शुक्लप्रतिपदि प्रभुः। शुक्लध्यानाग्निना दग्ध्वा चतुर्घातिमहावनम्।।११२।। अनन्तकेवलज्ञानदर्शनादिचतुष्टयम् । त्रैलोक्येन्द्रासनाकम्पि संप्रापत्परदुर्लभम् ।।११३।। स्रग्धरावृत्तम् घण्टारावोरुसिंहस्फुटपटहरवोदारशङ्खस्वनैस्तां जैनीं वैâवल्यलब्धिं सकलसुरगणा द्राग्विदित्वा यथास्वम् । इन्द्राः सिंहासनोच्चैर्मुकुटविचलनैः स्वान् प्रयुञ्ज्यावधीन् स्वैः प्राप्तानीवैâः सहायुः क्षुभितसलिलधिव्रातविद्भिस्रिलोक्याः।।११४।। आपूर्यावार्यवेगैर्गननजलनिधिं वाहनानां समूहैः सप्तानीवैâरनेवैâस्रिदशपतिगणस्तं परीत्य प्रपेदे। प्राच्चैर्मूर्धावलेपं गिरिपतिमधिपस्नानकल्याणमात्रं भूयः कल्याणकण्ठे गुणभरणगुणादूर्जयन्तं जयन्तम् ।।११५।। मन्दारादि द्रुमाणां सुरभितककुभां पुष्पवृष्ट्या सुराणां…
(आदिपुराण भाग—१ सेङ) द्वाविंशं पर्व अथ घातिजये जिष्णोरनुष्णीकृतविष्टपे। त्रिलोक्यामभवत् क्षोभः वैâवल्योत्पत्तिवात्यया।।१।। तदा प्रक्षुभिताम्भोधि वेलाध्वानानुकारिणी। घण्टा मुखरयामास जगत्कल्पामरेशिनाम्।।२।। ज्योतिर्लोके महािंन्सहप्रणादोऽभूत् समुत्थितः। येनाशु विमदीभावमवापन्सुरवारणाः।।३।। दध्वान ध्वनदम्भोद ध्वनितानि तिरोदधन्। वैयन्तरेषु गेहेषु महानानकनिःस्वनः।।४।। शंखः शं खचरैः सार्द्धं यूयमेत जिघृक्षवः। इतीव घोषयन्नुच्चैः फणीन्द्रभवनेऽध्वनत्।।५।। विष्टराण्यमरेशानामशनैः प्रचकम्पिरे। अक्षमाणीव तदगर्व सोढू जिनजयोत्सवे।।६।। पुष्करैः स्वैरथोत्क्षिप्तपुष्करार्धाः सुरद्विपाः। ननृतुः पर्वतोदग्रा महाहिभिरिवाद्रयः।।७।। पुष्पाञ्जलिमिवातेनुः समन्तात् सुरभूरुहाः। चलच्छाखाकरैदीर्घैविंगलत्कुसुमोत्करैः।।८।। दिशः…
समवसरण रचना (षट्खण्डागम धवला पु. ९ से ङ) अर्थकर्ता-ग्रन्थकर्ता का विवेचन कत्तारा दुविहा अत्थकत्तारो गंथकत्तारो चेदि। तत्थ अत्थकत्तारो भयवं महावीरो। तस्स दव्व-खेत्त-काल-भावेहि परूवणा कीरदे गंथस्स पमाणत्तपदुप्पायणट्ठं। केरिसं महावीर-सरीरं ? समचउरससंठाणं वज्जरिसहवइरणारायणसरीरसंघडणं ससुअंधगंधेण आमोइयतिहुवणं सतेजपरिवेढेण विच्छाईकयसुज्जसंघायं सयलदोसवज्जियमिदि। कधमेदम्हादो सरीरादो गंथस्स पमाणत्तमवगम्मदे ? उच्चदे—णिराउहत्तादो जाणाविदकोह-माण-माया-लोह-जाइ-जरा-भरण-भय-हिंसाभावं, णिप्फंदक्खेक्खणादो जाणाविदतिवेदोदयाभावं। णिराहरणत्तादो जाणाविदरागाभावं, भिउडिविरहादो जाणाविदकोहाभावं। वग्गण-णच्चण-हसण-फोडणक्खसुत्त-जडा-मउड-णरसिरमालाधरणविरहादो मोहाभावलिंगं। णिरंबरत्तादो लोहाभावलिंग। ण तिरिक्खेहि…
समवसरण रचना (तिलोयपण्णत्ति सेङ) जे संसारसरीरभोगविसए णिव्वेयणिव्वाहिणो, जे सम्मत्तविभूसिदा सविणया घोरं चरंता तवं। जे सज्झायमहद्धिवड्ढिव गदा झाणं च कम्मंतकं, ताणं केवलणाणमुत्तमपदं जाएदि किं कोदुकं।।७०४।। जादे केवलणाणे परमोरालं जिणाण सव्वाणं । गच्छदि उवरिं चावा पंचसहस्साणि वसुहाओ।। ७०५।। भुवणत्तयस्स ताहे अइसयकोडीय होदि पक्खोहो । सोहम्मपहुदिइंदाण आसणाइं पि कंपंति ।। ७०६।। त×ां¹पेणं इंदा संखुग्घोसेण भवणवासिसुरा । पडहरवेहिं वेंतर…