प्रशस्ति
“…प्रशस्ति…” —दोहा— महाकल्पद्रुम वीर प्रभु, फल अचिन्त्य दातार। महावीर भगवान को, नमूं अनन्तों बार।।१।। वीर दिव्यध्वनि श्रवण कर, द्वादशांग करतार। गौतम गणधर ग्रंथकृत्, नमूं उन्हें शत बार।।२।। श्री वीरशासन प्रथित, कुंदकुंद आचार्य। मूलसंघ में नाम से, कुंदकुंद आम्नाय।।३।। गच्छ सरस्वती गण कहा, बलात्कार शुभ मान्य। चारितचक्री प्रथम गुरू, शांतिसागराचार्य।।४।। उनके पट्टाचार्य गुरू, वीरसागराचार्य। महाव्रत दातागुरू,…