प्रशस्ति
प्रशस्ति……. ऋषभदेव को नित नमूँ, नमूँ अयोध्या तीर्थ। हुए अनंतानंत ही, तीर्थंकर मुनि कीर्त्य।।१।। चौबीसवें तीर्थकर, महावीर भगवन्त। नमूँ अनन्तों बार मैं, पाऊँ सौख्य अनंत।।२।। द्वादशांग वाणी नमूँ, सरस्वती मुनिवंद्य। गौतम गणधर गुरु नमूँ, नमूँ साधु निग्रंथ ।।३।। सदी बीसवीं के प्रथम, शांतिसागराचार्य। उनके पट्टाचार्य थे, वीरसागराचार्य।।४।। देकर दीक्षा आर्यिका, दिया ज्ञानमती नाम। गुरुवर कृपाप्रसाद…