मिथ्यात्व :!
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == मिथ्यात्व : == मिथ्यात्वं वेदयन् जीवो विपरीतदर्शनो भवति। न च धर्म रोचते हि, मधुरं रसं यथा ज्वरित:।। —समणसुत्त : ६८ जो जीव मिथ्यात्व से ग्रस्त होता है, उसकी दृष्टि विपरीत हो जाती है। उसे धर्म भी रुचिकर नहीं लगता, जैसे ज्वरग्रस्त मनुष्य को मीठा रस भी अच्छा नहीं…