मुक्ति-मार्ग :!
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == मुक्ति-मार्ग : == सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग:। —तत्त्वार्थ सूत्र : १-१ सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र—यही मोक्ष का मार्ग है।
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == मुक्ति-मार्ग : == सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग:। —तत्त्वार्थ सूत्र : १-१ सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र—यही मोक्ष का मार्ग है।
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == विद्या : == सम्यगाराधिता विद्यादेवता कामदायिनी। —आदिपुराण : १६-९९ विद्या देवता की सम्यग्—सही विधि से आराधना करने पर वह समस्त इच्छित फल प्रदान करती है।
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == शिक्षा :== विपत्तिरविनीतस्य, संपत्तिर्विनीतस्य च। यस्यैतद् द्विधा ज्ञातं, शिक्षां स: अधिगच्छति।। —समणसुत्त : १७० अविनयी के ज्ञान आदि गुण नष्ट हो जाते हैं, यह उनकी विपत्ति है और विनयी को ज्ञान आदि गुणों की सम्प्राप्ति होती है (यह उसकी सम्पत्ति है)। इन दोनों बातों को जानने वाला ही…
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == संवर : == सर्वभूतात्मभूतस्य, सम्यक् भूतानि पश्यत:। पिहितास्रवस्य दान्तस्य, पापं कर्म न बध्यते।। —समणसुत्त : ६०७ जो समस्त प्राणियों को आत्मवत् देखता है और जिसने कर्मास्रव के सारे द्वार बंद कर दिए हैं उस संयमी को पापकर्म का बंध नहीं होता। तपसा चैव न मोक्ष:, संवरहीनस्य भवति जिनवचने।…
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == समर्थ : == महिऊण महाजलिंह महुमहणो तत्थ सुयइ वीसत्थो। एयं नीइविरुद्धं छज्जइ सव्वं समत्थाणं।। —गाहारयणकोष : १८२ महासमुद्र का मंथन करके विष्णु वहीं सुखपूर्वक सोते हैं। ऐसे नीतिविरुद्ध कार्य (किसी का घर उजाड़कर वहीं शरण लेना) तो समर्थ को ही शोभा देते हैं।
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == सूक्ष्म कषाय : == कौसुम्भ: यथा राग:, अभ्यन्तरत: च सूक्ष्मरक्त: च। एवं सूक्ष्मसराग:, सूक्ष्मकषाय इति ज्ञातव्य:।। —समणसुत्त : ५५९ कुसुम्भ के हल्के रंग की तरह जिनके अन्तरंग में केवल सूक्ष्म राग शेष रह गया है, उन मुनियों को सूक्ष्म—सराग या सूक्ष्म—कषाय जानना चाहिए।
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == गच्छ : == रत्नत्रयमेव गण:, गच्छ: गमनस्य मोक्षमार्गस्य। संघो गुणसंघात:, समय: खलु निर्मल: आत्मा।। —समणसुत्त : २६ रत्नत्रय ही ‘गण’ है। मोक्षमार्ग में गमन ही ‘गच्छ’ है। गुण का समूह ही संघ है तथा निर्मल आत्मा ही समय है। अत्यं यासइ अरहा सुत्तं गंथंति गणहरा निउणं। अर्थ (सिद्धान्त/भाव…
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == ज्ञान : == सुत्तं अत्थनिमेणं, न सुत्तमेत्तेण अत्थपडिवत्ती। अत्थगई पुण णयवाय गहणलीणा दुरभिगम्मा।। —सन्मति तर्क् प्रकरण : ३-६४ सूत्र (शब्द पाठ) अर्थ का स्थान अवश्य है, परन्तु मात्र सूत्र से अर्थ की प्रतिपत्ति नहीं हो सकती। अर्थ का ज्ञान तो गहन नयवाद पर आधारित होने से बड़ी कठिनता…
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == निदान : == अगणियत्या यो मोक्षमुखं, करोति निदानमसारसुखहेतो:। स काचमणिकृते, वैडूर्यमणिं प्रणाशयति।। —समणसुत्त : ३६६ जो व्रती मोक्ष—सुख की उपेक्षा या अवगणन करके (परभव में) असार सुख की प्राप्ति के लिए निदान या अभिलाषा करता है, वह कांच के टुकड़े के लिए वैडूर्यमणि को गंवाता है। छेत्तूण य…
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == मुधाजीवी : == दुर्लभा तु मुधादायिन:, मुधाजीविनोऽपि दुर्लभा:। मुधादायिन: मुधाजीविन:, द्वावपि गच्छत: सुगतिम्।। —समणसुत्त : ४०४ मुधादायी—निष्प्रयोजन देने वाले दुर्लभ हैं और मुधाजीवी—भिक्षा पर जीवनयापन करने वाले भी दुर्लभ हैं। मुधादायी और मुधाजीवी, दोनों ही साक्षात् या परम्परा से सुगति या मोक्ष प्राप्त करते हैं।