वाणी-विवेक :!
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == वाणी-विवेक : == हिदमिदवयणं भासदि, संतोषकरं तु सव्वजीवाणं। —कार्तिकेयानुप्रेक्षा : ३३४ साधक दूसरों को संतोष देने वाला हितकारी और मित—संक्षिप्त वचन बोलता है। मा कडुयं भणह जणे महुरं, पडिमणह कडुयभणिया वि। जइ गेण्हिऊण इच्छह लोए सुहयत्तण—पडायं।। —कुवलयमाला : ८५ यदि संसार में अच्छेपन की ध्वजा लेकर चलना चाहते…