शत्रु :!
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == शत्रु : == एक: आत्माऽजित: शत्रु:, कषाया इन्द्रियाणि च। तन् जित्वा यथान्यायं, विहराम्यहं मुने।। —समणसुत्त : १२४ अविजित एक अपना आत्मा ही शत्रु है। अविजित कषाय और इन्द्रियां ही शत्रु हैं। हे मुने ! मैं उन्हें जीतकर यथान्याय (धर्मानुसार) विचरण करता हूँ।