श्रावक-धर्म:!
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == श्रावक-धर्म: == सहसाभ्याख्यानं, रहसा च स्वदारमन्त्र भेदं च। मृषोपदेशं कूटलेखकरणं च वर्जयेत्।। —समणसुत्त : ३१२ (साथ ही साथ) सत्य—अणुव्रती बिना सोचे—समझे न तो कोई बात करता है, न किसी का रहस्योद्घाटन करता है, न अपनी पत्नी की कोई बात मित्रों आदि में प्रकट करता है, न मिथ्या (अहितकारी)…