विरक्त :!
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == विरक्त : == भावे विरक्तो मनुजो विशोक:, एतया दु:खौघ—परम्परया। न लिप्यते भवमध्येऽपि सन् , जलेनेव पुष्करिणीपलाशम्।। —समणसुत्त : ८१ भाव से विरक्त मनुष्य शोक—मुक्त बन जाता है। जैसे कमलिनी का पत्र जल में लिप्त नहीं होता, वैसे ही वह संसार में रहकर भी अनेक दु:खों की परम्परा से…