01. स्वरूपाचरण चारित्र
समयसार के टीकाकार श्री जयसेनस्वामी के अनुसार पहले,दूसरे,तीसरे तीन गुणस्थान में तरतमता से अशुभोपयोग है ,पुनःचौथे ,पाचवें,छठे इन तीन गुनस्थानों में तरतमता से शुभोपयोग है |इसके अनंतर सातवें से लेकर बारहवें इन छ: गुनस्थानों में तरतमता से शुध्दोपयोग हैं,पुनःतेरहवें,चौदहवें गुनस्थान में शुध्दोपयोग का फल हैं|
इसी तथ्य को छहढालाकार ने परीपुष्ट किया हैंअत: वर्तमान में चौथे गुनस्थानमें स्वरूपाचरण चारित्र को घटना किसी भी प्रकार उचित नहीं हैं|