आचार्य श्री समन्तभद्र जी
आचार्य समन्तभद्र का सर्वोदय तीर्थ बहुगुणसम्पद्सकलं परमतमपि मधुरवचनविन्यासकलम्। नयभक्त्यवतंसकलं तवदेव मतं समन्तभद्रं सकलम्।। उक्त कारिका में उन्होंने अपना नाम समन्तभद्र दिया है। स्तुतिविद्या ग्रंथ के ११६वें काव्य से एक अर्थ निकलता है ‘‘समन्तवर्म कृतं’’। व्याख्याकार इसका अर्थ शान्ति वर्मान्त का लिखा मानते हैं परन्तु अन्य किसी मुनिराज के नाम में वर्मान्त शब्द का प्रयोग न...