पुण्य और पाप के विषय में अनेकांत
पुण्य और पाप के विषय में अनेकांत ( प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी) पापं ध्रुवं परे दु:खात् पुण्यं च सुखतो यदि। अचेतनाकषायौ च बध्येयातां निमित्तत:।।९२।। अर्थ — यदि पर को दु:ख उत्पन्न कराने में नियम से पाप बन्ध होता है और पर को सुख उत्पन्न कराने से नियम से पुण्य का बन्ध होता है…