11. गुरु भक्ति का सुफल
गुरु भक्ति का सुफल मौर्य सम्राट ‘चन्द्रगुप्त मुनिराज’ श्रुतकेवली श्री भद्रबाहु की समाधि के पश्चात् स्थापित गुरूचरण की भक्ति करते हुए बारह वर्षों तक वन में रहे, जिसके प्रभाव से देवों ने वन में ही नगर बसाकर उनको आहार दान दिया। जब संघ वापस आया तब उनमें से एक मुनि आहार के बाद कमंडलु भूल...