अभक्ष्य विजय-अभक्ष्य किसे कहते हैं ? संजय-सुनो! हमें जैसा महाराज जी ने बतलाया है, वैसा ही बतलाता हूँ। जो पदार्थ भक्षण करने अर्थात् खाने योग्य नहीं होते हैं उन्हें अभक्ष्य कहते हैं। इनके पाँच भेद हैं-त्रस हिंसाकारक, बहुस्थावर हिंसाकारक, प्रमादकारक, अनिष्ट और अनुपसेव्य। (१) जिस पदार्थ के खाने से त्रस जीवों का घात होता है,…
सात व्यसन जिस काम को बार-बार करने की आदत पड़ जाती है, उसे व्यसन कहते हैं। यहाँ बुरी आदत को व्यसन कहा है अथवा दु:खों को व्यसन कहते हैं। यहाँ उपचार से दु:खों के कारणों को भी व्यसन कह दिया है। ये व्यसन सात हैं— जुआ खेलन, मांस, मद, वेश्यागमन, शिकार। चोरी, पररमणी रमण, सातों…
सम्यग्दर्शन सम्यग्दर्शन सच्चे देव, सच्चे शास्त्र और सच्चे गुरु का श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है। यह आठ अंग से सहित होता है तथा इन अंगों के उल्टे शंकादि आठ दोष, आठ मद, छह अनायतन और तीन मूढ़ता इन पच्चीस दोषों से रहित होता है अथवा छह द्रव्य, पांच अस्तिकाय, सात तत्त्व और नव पदार्थ इनका श्रद्धान…
आलोचना पाठ दोहा वंदों पाँचों परमगुरु, चौबीसों जिनराज। करूं शुद्ध आलोचना, शुद्ध करन के काज ।।१।। छंद चौपाई सुनिये जिन अरज हमारी, हम दोष किये अति भारी। तिनकी अब निर्वृति काजा, तुम शरण लही जिनराजा ।।२।। इक बे ते चउ इन्द्री वा, मन रहित सहित जे जीवा। तिनकी नहिं करुणाधारी, निर्दयी ह्वै घात विचारी ।।३।।…
कर्म आस्रव के कारण कर्मों के आने के द्वार को आस्रव कहते हैं। इसके दो भेद हैं— पुण्यास्रव और पापास्रव। अर्हंत भक्ति, जीवदया आदि क्रियारूप शुद्धयोग से पुण्यास्रव और जीविंहसा झूठ आदि क्रियारूप अशुभयोग से पापास्रव होता है। ज्ञानावरण कर्म के आस्रवके कारण—ज्ञानी से ईष्र्या करना, ज्ञान के साधनों में विघ्न डालना, अपने ज्ञान को…
आत्मा का स्वभाव सुधा— भादों की अनंत चतुर्दशी को मेरी मां ने मुझे जबरदस्ती उपवास कराया और जब मैं भूख-प्यास की बाधा से रात्रि में बहुत घबराने लगी, तब मां बोली कि बेटी! तुम यह भावना करो कि शरीर भिन्न है और आत्मा भिन्न है। आत्मा को भूख-प्यास नहीं लगती है। ऐसी भावना करने से…
श्रावक के भेद श्रावक के ३ भेद हैं— पाक्षिक, नैष्ठिक और साधक। ‘किसी भी निमित्त से मैं संकल्पपूर्वक त्रस हसा का घात नहीं करूंगा’ इस प्रकार की प्रतिज्ञा करके, मैत्री आदि भावनाओं से सहित होते हुए हसा का त्याग करना पक्ष कहलाता है। इस पक्ष कर सहित श्रावक पाक्षिक कहलाता है। यह अष्ट मूलगुण और…
पंचकल्याणक कोई भी श्रावक या मुनि दर्शनविशुद्धि आदि सोलह कारण भावनाओं को भाते हुए केवली भगवान या श्रुतकेवली के पादमूल में तीर्थंकर नामक कर्म प्रकृति के बंध कर लेते हैं। आयु पूर्ण होने पर मरकर स्वर्ग में देव हो जाते हैं। यदि किसी ने नरक की आयु बाँध ली है, फिर सम्यग्दृष्टि होकर तीर्थंकर प्रकृति…
पंचगुरुभक्ति अष्ट महा शुभ प्रातिहार्य, संयुत अर्हंत जिनेश्वर हैं। अष्ट गुणान्वित ऊध्र्वलोक, मस्तक पर सिद्ध विराजे हैं।। अष्ट सुप्रवचन माता संयुत, श्रीआचार्य प्रवर जग में। आचारादिक श्रुतज्ञानामृत, उपदेशी पाठकगण हैं।।१।। रत्नत्रय गुण पालन में रत, सर्व साधु परमेष्ठी हैं। नितप्रति अर्चूं पूजूं वंदूं, नमस्कार मैं करूँ उन्हें ।। दु:खों का क्षय कर्मों का क्षय, हो…