10. पूर्वधातकीखण्डद्वीप ऐरावतक्षेत्र भूतकालीन तीर्थंकर स्तोत्र
(चौबीसी नं. १०) पूर्वधातकीखण्डद्वीप ऐरावतक्षेत्र भूतकालीन तीर्थंकर स्तोत्र गीता छंद श्री विजयमेरू उत्तरी दिश, क्षेत्र ऐरावत कहा। जो पूर्वधातकी द्वीप में है, कालषट् को धर रहा।। उसके चतुर्थेकाल में जो, भूतकालिक जिनवरा। वंदूँ उन्हें वर भक्ति से, वे हों हमें क्षेमंकरा।।१।। दोहा त्रिभुवनपति त्रिभुवनधनी, त्रिभुवन के गुरु आप। त्रिभुवन के चूड़ामणी, नमू-नमूँ नत माथ।।२।। …