धर्म की महिमा
धर्म की महिमा का तथा धर्म के उपदेश स्रग्धरा इत्यादिर्धर्म एष क्षितिपसुरसुखानघ्र्यमाणिक्यकोष: पायो दु:खनलानां परमपदलसत्सौधसोपानराजि:। एतन्माहात्म्यमीश: कथयतिजगतांकेवलीसाध्वेधीति सर्वस्म्न्विाङ्येथस्मरति परमहोमादृशस्तस्यनाम।। अर्थ — ग्रन्थकार कहते हैं कि पूर्व में जो दया आदिक पांच प्रकार का धर्म कहा है वह धर्म बड़े—२ चक्रवर्ती आदिक राजाओं के तथा इंद्र अहमिन्द्र आदि के सुख का देने वाला है तथा समस्त…